
बेवर्ली ब्रॉडस्की का जन्म फिलाडेल्फिया के एक पारंपरिक यहूदी परिवार में हुआ था। बचपन में जब उन्होंने होलोकॉस्ट की भयानक कहानियाँ सुनीं — लोग सिर्फ अपने धर्म के कारण मारे जा रहे थे, तब उनके मन में सवाल उठे। “अगर भगवान है, तो इतना अत्याचार कैसे होने देता?” आठ साल की छोटी उम्र में ही उन्होंने भगवान के अस्तित्व पर संदेह करना शुरू कर दिया। साल 1958 से उन्होंने खुद को नास्तिक मान लिया। उनके लिए ब्रह्मांड एक संयोग था, और जीवन बस एक जैविक प्रक्रिया।
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हादसा जिसने सब कुछ बदल दिया
साल 1970 का वह दिन बेवर्ली की ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल देने वाला था। लॉस एंजेलिस के प्रसिद्ध सनसेट बुलेवार्ड के पास उनकी मोटरबाइक का एक्सीडेंट हुआ। हादसा इतना गंभीर था कि उनके सिर की हड्डी टूट गई और चेहरे का दाहिना हिस्सा बुरी तरह कुचल गया। UCLA अस्पताल में डॉक्टरों ने कहा, “ऐसे घाव तो युद्ध में देखने को मिलते हैं।” हफ्तों तक दर्द और डर के बीच उन्होंने अपनी सांसें गिनीं।
जब बिना किसी दर्दनिवारक दवा के उन्हें डिस्चार्ज किया गया, वह टूट चुकी थीं शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से। तभी उन्होंने भीतर से पुकारा, “अगर तुम सच में हो, तो मुझे अभी अपने पास बुला लो।” उसी क्षण कुछ ऐसा हुआ जो उनकी सोच को सदा के लिए बदल गया।
आत्मा का शरीर से अलग होना
बेवर्ली बताती हैं कि जैसे ही उन्होंने ईश्वर को पुकारा, उनका दर्द अचानक गायब हो गया। उन्हें महसूस हुआ कि उनका शरीर अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा है, पर वो खुद छत के पास आसमान में तैर रही हैं। एक शांति थी पूरी तरह से दबे दर्द के बाद की एक अद्भुत खामोशी। उन्होंने एक चमकदार, पारदर्शी आकृति देखी जो मानो किसी देवदूत जैसी थी। उस आकृति ने उनका हाथ थामा, और पलभर में उनकी सारी बेचैनी मिट गई।
रोशनी की ओर यात्रा
उस देवदूत जैसी ऊर्जा ने उन्हें अस्पताल के कमरे से बाहर ले जाया। बेवर्ली कहती हैं, “हम उड़ते हुए खिड़की पार कर गए और प्रशांत महासागर के ऊपर से एक चमकीली रोशनी की ओर बढ़ने लगे।” उसके बाद वे एक संकरी, अंधेरी सुरंग से गुज़रीं ऐसा लगा मानो ब्रह्मांड की सीमाओं को पार कर रही हों। अंत में एक जगह पहुँचीं जहाँ चारों ओर अनोखी आभा थी, मानो हर तरफ प्रेम, करुणा और संतुलन बसा हो।
एक अनकहा संवाद
वह रोशनी किसी सजीव चेतना जैसी थी उसमें न कोई चेहरा था, न शरीर, फिर भी वहाँ से बुद्धि, प्रेम और करुणा की लहरें उठ रही थीं। बेवर्ली को महसूस हुआ कि वह किसी महान शक्ति के सामने हैं, शायद वही जिसे लोग “भगवान” कहते हैं। उन्होंने मन ही मन अनगिनत सवाल पूछे: “क्यों अन्याय होते हैं? दुख क्यों है? जीवन का अर्थ क्या है?”
जवाब शब्दों में नहीं थे, बल्कि विचारों के माध्यम से सीधे उनके मन में उतर रहे थे। वह कहती हैं, “उस पल मेरे सारे सवाल पारदर्शी हो गए, जैसे कोई पर्दा हट गया हो और सब कुछ साफ दिखने लगा।”
ब्रह्मांड का रहस्य और वापसी
उन्हें ऐसा लगा जैसे ब्रह्मांड का हर रहस्य उनके सामने खुल रहा है, समय, जीवन, प्रेम, आत्मा सबका अर्थ एक साथ प्रकाशित हो रहा था। लेकिन यह अनुभव ज्यादा देर नहीं चला। अचानक सब कुछ धुंधला पड़ गया और वह दोबारा अपने घायल शरीर में लौट आईं। ICU के बिस्तर पर जब आंखें खुलीं, तो उन्हें ही नहीं, डॉक्टरों को भी विश्वास नहीं हुआ कि वह बच गई हैं।
अनुभव जिसने बदला नजरिया
यह घटना उनके लिए केवल एक “निकट-मृत्यु अनुभव” नहीं थी, बल्कि एक नए जन्म की तरह थी। अब वह खुद को आस्तिक मानती हैं और दुनिया भर में जाकर अपना अनुभव साझा करती हैं। उनका कहना है, “मैंने उस ऊर्जा को महसूस किया था, जो हर जीव में बसती है। अब मुझे पता है, मृत्यु अंत नहीं एक नए आरंभ की ओर जाने का रास्ता है।”
उनकी इस सच्ची कहानी ने अनगिनत लोगों को प्रेरित किया, और लेखक कैनेथ रिंग ने इसे अपनी किताबों में जगह दी। आज भी बेवर्ली ब्रॉडस्की अपनी उस “रोशनी की यात्रा” को जीवन का सबसे पवित्र अनुभव मानती हैं।

















